प्रभु शरण में आयें

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

नमो भगवते आञ्जनेयायाय महाबलाय स्वाहा


मन्त्रोद्धार : हृदय (नमः) चतुर्थ्यन्त भगवान् आञ्जनेय एवं महाबल (भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय) और अन्त में बह्निप्रिया (स्वाहा) लगाने से यह अष्टादशाक्षर मन्त्र बनता है।
विनियोग : अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , हनुमान् देवता , हुं बीजं , स्वाहा शक्तिः , ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।
षडङ्गन्यास : ॐ आञ्जनेयाय हृदयाय नमः । रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा । वायुपुत्राय शिखायै वषट् । अग्निगर्भाय कवचाय हुम् । रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् । ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अस्त्राय फट् ।
दहततप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहिताञ्जलिम्।
श्रवणकुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमतवानरराजमिहाद्भुतम्।
अर्थात् : तपे हुए सोने केसमान आभावाले , भय को दूर करने वाले , हृदय पर अञ्जलि बाँधे हुए , कानों में लटकते कुण्डलों से शोभायमान मुखपङ्कज वाले अद्भुत वानरराज हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ।
इस मन्त्र का एक अयुत (दस हजार) जप करना चाहिये उसके बाद तिलों से दशांश होम करना चाहिये तथा वैष्णव पीठ पर कपीश्वर क पूजन करना चाहिये।इसकी पीठ-पूजा एवं आवरण पूजा द्वादशाक्षर मन्त्र के समान ही होगी।
काम्यप्रयोग : सर्वविधि सम्मत और पूर्वोक्त रीति से अनुष्ठित इस मन्त्र को जो साधक केवल रात्रि में भोजनकर ३ दिनों तक नित्य १०८ बार जप करता है, वह मात्र ३ दिन में क्षुद्र रोगों से मुक्त हो जाता है।भूत-प्रेत-पिशाचादि बाधाओं की शान्ति के लिये भी उक्त प्रयोग करना चाहिये,परन्तु लम्बी एवं असाध्य व्याधियों के निबर्हण हेतु नित्य १हजार जप करना चाहिये।

हनुमान जी का द्वादशाक्षर मन्त्र

“ हौं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं हनुमते नमः “ यह हनुमान जी का द्वादशाक्षर मन्त्र है।इसका मन्त्रोद्धार और सम्पूर्ण साधनाविधि निम्नलिखित है।
इन्द्र स्वर एवं विन्दु सहित वराह (हौं) झिंटीश एवं विन्दु सहित ह् स् फ् अग्नि (र्)अर्थात् ‘ह्स्फ्रें’ यह द्वितीय बीज कहा गया है। रुद्र तथा इन्दु सहित गदी(ख) पान्त(फ) तथा अग्नि (र)अर्थात् ‘ख्फ्रें’ यह तृतीय बीज है। मनु एवं चन्द्र सहित ह् स् र् अर्थात् ‘ह्स्रौं’ यह चतुर्थ बीज है। शिव एवं इन्दु सहित ह् ,स्, ख्, फ् तथा र् अर्थात् ‘ह्स्ख्फ्रें’ यह पञ्चम बीज है। मनु एवं इन्दु सहित ह् तथा स् अर्थात् ‘ह्सौं’ यह षष्ठ बीज है। इसके बाद च्तुर्थ्यन्त हनुमान् (हनुमते) और अन्त में हार्द (नमः)लगाने से यह १२ अक्षरों का मन्त्र बनता है।
विनियोग: अस्य श्रीहनुमन्मन्त्रस्य रामचन्द्रः ऋषिः जगती छन्दः,हनुमान् देवता, ह्स्रौं बीजं,ह्स्फ्रें शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
षडङ्ग एवं वर्णन्यास : मन्त्र के ६ बीजों से षडङ्गन्यास करना चाहिये।तथा मन्त्र के (एक-एक)वर्ण का क्रमशः शिर ,ललाट ,नेत्र ,मुख ,कण्ठ ,दोनों हाथ ,हृदय ,कुक्षि ,नाभि ,लिङ्ग ,दोनों जानु एवं दोनों पैरों पर न्यास करना चाहिये।
षडङ्ग न्यास विधि : हौं हृदयाय नमः।ह्स्फ्रें शिरसे स्वाहा।ख्फ्रें शिखायै वषट्।ह्स्रौं कवचाय हुम्।ह्स्ख्फ्रें नेत्रत्रयाय वौषट्।ह्स्रौं अस्त्राय फट्।
वर्णन्यास विधि : हौं नमः मूर्ध्नि । ह्स्फ्रें नमः ललाटे । ख्फ़्रें नमः नेत्रयोः । ह्स्रौं नमः मुखे । ह्स्ख्फ्रें नमः कण्ठे । ह्सौं नमः बाह्वो । हं नमः हृदि । नुं नम कुक्ष्योः। मं नमः नाभौ । तें नमः लिङ्गे । नं नमः जान्वोः। मः नमः पादयोः।
पदन्यास : मन्त्र के ६ बीजों एवं दोनों पदों का क्रमशः शिर, ललाट , मुख , हृदय , नाभि , ऊरु , जङ्घा एवं पैरों पर न्यास करना चाहिये।
पदन्यास विधि : हौं नमः मूर्ध्नि । ह्स्फ्रें नमः ललाटे । ख्फ्रें नमः मुखे । ह्स्रौं नमः हृदि । ह्स्ख्फ्रें नमः नाभौः । ह्सौं नमः ऊर्वो । हनुमते नमः जङ्घयोः । नमः नमः पादयोः।
उदीयमान सूर्य जैसी आभावाले , तीनों लोकों को क्षोभित करने वाले, सुन्दर ,सुग्रीव आदि वानर समुदाय से सेव्यमान चरणों वाले , अपने नाद से ही समस्त राक्षस-समुदाय को भयभीत करने वाले , अपने स्वामी भगवान् राम के चरणारविन्दों का सतत स्मरण करने वाले हनुमान जी का ध्यान करना चाहिये।
बालार्कायुततेजसंत्रिभुवनप्रक्षोभकं सुदरं
सुग्रीवादिसमस्तवानरगणैः संसेव्यपादाम्बुजम्।
नादेनैव समस्तराक्षसगणान्संत्रासयन्तं प्रभुं
श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम्॥
ऐसा ध्यान कर एकाग्र मन से साधक १२ हजार मन्त्रों का जप करे एवं दूध , दही  एवं घृत मिलाकर ब्रीहि (धान) से दशांश होम करना चाहिये।
पीठपूजा : विमलादि शक्तियों वाले पीठ पर हनुमान् का पूजन करना चाहिये।
पीठपूजा विधि : वृत्ताकार कर्णिका , फिर अष्टदल , फिर भूपुर सहित बने यन्त्र पर हनुमान् जी का पूजन करना चाहिये।
ध्यान के श्लोक  में वर्णित श्रीहनुमान् जि के स्वरूप का ध्यान कर मानसोपचार से पूजन कर विधिवत अर्घ्यस्थापन कर निम्निलिखित मन्त्रों से निर्दिष्ट स्थान एवं दिशाओं में पीठ देवताओं का पूजन करना चाहिये यथा—
पीठमध्ये — ॐ आधार शक्तये नमः । ॐ प्रकृतये नमः । ॐ कूर्माय नमः । ॐ अनन्ताय नमः । ॐ पृथिव्यै नमः । ॐ क्षीरसमुद्राय नमः । ॐ श्वेतद्वीपाय नमः । ॐ मणिमण्डपाय नमः । ॐ कल्पवृक्षाय नमः । ॐ  मणिवेदिकायै नमः । ॐ रत्न-सिंहासनाय नमः ।
तदनन्तर आग्नेयादि कोणों मे निम्नलिखित मन्त्रों से धर्म आदि का तथा पूर्व आदि दिशाओं में अधर्म आदि का पूजन करना चाहिये, यथा—
ॐ धर्माय नमः आग्नेये । ॐ ज्ञानाय नमः नैऋत्ये । ॐ वैराग्याय नमः वायव्ये । ॐ ऐश्वर्याय नमः ईशान्ये । ॐ अधर्माय नमः पूर्वे ।ॐ अज्ञानाय नमः दक्षिणे । ॐ अवैराग्याय नमः पश्चिमे । ॐ अनैश्वर्याय नमः उत्तरे ।
तत्पश्चात् पुनः पीठ के मध्य में निम्नलिखित मन्त्रों से अनन्त आदि का पूजन करना चाहिये,यथा –
ॐ अनन्ताय नमः । ॐ पद्माय नमः । ॐ रं अं सूर्यमण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः । ॐ उं सोममण्डलाय षोडशकलात्मने नमः ।  ॐ रं बह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः । ॐ सं सत्त्वाय नमः । ॐ रं रजसे नमः । ॐ तमसे नमः । ॐ आं आत्मने नमः । ॐ अं अन्तरात्मने नमः । ॐ पं परमात्मने नमः । ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः ।
फिर केसरों में पूर्वादि ८ दिशाओं में तथा मध्य में निम्नलिखित मन्त्रों से विमला आदि पीठशक्तियों का पूजन करना चाहिये , यथा :
पूर्वादिदिक्षु – ॐ विमलायै नमः । ॐ उत्कर्षिण्यै नमः । ॐ ज्ञानायै नमः । ॐ क्रियायै नमः । ॐ योगायै नमः । ॐ प्रह्व्यै नमः । ॐ सत्यायै नमः । ॐ ईशानायै नमः ।
मध्ये – ॐ अनुग्रहायै नमः ।
और फिर आसन मन्त्र से इस पूजित पीठ पर आसन देकर ध्यान , आवाहन आदि उपचारों से मूल मन्त्र से पञ्चपुष्पाञ्जलि समर्पणपर्यन्त हनुमान् जी का विधिवत पूजन करना चाहिये।
आवरण पूजा : केसरों में अङ्गपूजा तथा दलों पर तत्तद् नामों वाले हनुमान् का पूजन करना चाहिये । रामभक्त , महातेज , कपिराज , महाबल ,द्रोणाद्रि हारक , मेरु-पीठकार्चनकारक , दक्षिणाशाभास्कर तथा सर्वविघ्ननिवारक— इन नामों का पूजन कर दलों के अग्रभाग में वानरों का पूजन करना चाहिये । सुग्रीव , अङ्गद , नील , जाम्बवन्त , नल , सुषेण , द्विविद एवं मैन्द – ये वानर हैं । और फिर दसों दिक्पालों का पूजन करना चाहिये ।
आवरण पूजा में पूर्वोक्त विधियों से केसरों में आग्नेयादि क्रम से अङ्गपूजा तदनन्तर दलों में रामभक्तादि नामों से हनुमान् जी का पूजन करना चाहिये उसके बाद वानरों का दलों के अग्रभाग में पूजन करना चाहिये फिर दसों दिक्पालों का पूजन करना चाहिये ।
इसप्रकार से आवरण-पूजा करने के उपरान्त धूपदीपादि से विधिपूर्वक हनुमान जी का पूजन करना चाहिये।
काम्यप्रयोग : इस प्रकार मन्त्र सिद्ध हो जाने के उपरान्त अपना अथवा दूसरे का अभीष्ट कार्य करना चाहिये । केला , बिजौरा नींबू , एवं आम इन फलों से १हजार आहुतियाँ देकर २२ ब्रह्मचारियों एवं ब्राह्मणों को भोजन-वस्त्र-दानादिकों द्वारा संतुष्ट करना चाहिये । ऐसा करने पर महाभूत , विष एवं चोर आदि के उपद्रव तथा विद्वेष करने वाले ग्रह एवं दानवादि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
विषेश – इस मन्त्र से मारण , मोहन , स्तंभन , उच्चाटनादि के साथ-साथ वेताल साधन भी किया जाता है लेकिन वह समस्त प्रयोग यहाँ देना श्रेयस्कर नहीं है।





मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

हनुमान् जी के कर्णाटक मन्त्र की साधना




 “ॐ यं ह्रीं वायु-पुत्राय ! एहि एहि, आगच्छ आगच्छ, आवेशय आवेशय, रामचन्द्र आज्ञापयति स्वाहा ।”

विधिः- ‘कर्णाटक’ नामक उक्त मन्त्र को, पूर्ववत् पुरश्चरण कर, सिद्ध कर लेना चाहिए। फिर यथोक्त-विधि से ‘आकर्षण’ प्रयोग करे।

मन्त्रस्तु खाने पाने, पूर्ववत् पुरश्चर्यमामन्त्र-सिद्धिः ।ताम्बूलेन कुलेशानि ! स्त्रीणामाकर्षणं भवेत् ।
पुष्पेणैव च राजानं, चन्दनैर्विप्रजं कुलम ।।शूद्राणां फल-योगेन, ह्याकर्षण-करं भवेत्। ।
आकर्षणं च वैश्यानां, सितया च गुड़ेन च ।


  • साधक इस मन्त्र की साधना आञ्जनेय मन्त्र की भाँति ही करे।
     

सोमवार, 30 सितंबर 2019

हनुमान जी की आञ्जनेय मन्त्र साधना



।। श्री पार्वत्युवाच ।।
हनुमच्छावरं मन्त्रं, नित्य-नाथोदितं तथा ।
वद मे करुणा-सिन्धो ! सर्व-कर्म-फल-प्रदम् ।।
।। श्रीईश्वर उवाच ।।
आञ्जनेयाख्यं मन्त्रं च, ह्यादि-नाथोदितं तथा ।
सर्व-प्रयोग-सिद्धिं च, तथाप्यत्यन्त-पावनम् ।।


 

                                                              ।। मन्त्र ।।
“ॐ ह्रीं यं ह्रीं राम-दूताय, रिपु-पुरी-दाहनाय अक्ष-कुक्षि-विदारणाय,अपरिमित-बल-पराक्रमाय,रावण-गिरि-वज्रायुधाय ह्रीं स्वाहा॥”


विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग गुरुवार के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। श्री हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख बैठकर दस सहस्त्र जप करे। इस प्रयोग से सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। मनोनुकूल विवाह-सम्बन्ध होता है। अभिमन्त्रित काजल रविवार के दिन लगाना चाहिए। अभिमन्त्रित जल नित्य पीने से सभी रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। इसी प्रकार आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि सभी प्रयोग उक्त मन्त्र से किए जा सकते हैं।


विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग गुरुवार के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। श्री हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख बैठकर दस सहस्त्र जप करे। इस प्रयोग से सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। मनोनुकूल विवाह-सम्बन्ध होता है। अभिमन्त्रित काजल रविवार के दिन लगाना चाहिए। अभिमन्त्रित जल नित्य पीने से सभी रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। इसी प्रकार आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि सभी प्रयोग उक्त मन्त्र से किए जा सकते हैं।

यथा-
एतद् वायु-कुमाराख्यं, मन्त्रं त्रैलोक्य-पावनम् ।गुरु-वारे चाञ्जनेयं, समारभ्य सु-बुद्धिमान् ॥
कांक्षितां कन्यकां वाऽथ, युवाऽऽप्नोत्येव पार्वति !आञ्जनेयस्य पुरतो, ह्ययुतं जपमाचरेत् ॥
कज्जलं च रवौ ग्राह्यं, खाने पाने च पार्वति !दातव्यं त्रि-दिनं सम्यक्, स्वयमाकर्षणं भवेत् ॥
मन्त्रेणानेन देवेशि ! मन्त्रितं जल-पानतः ।सर्व-रोग-विनिर्मुक्तो, जीवेद् वर्ष-शतं तथा ॥
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰निशायाः कज्जलं तथा ।॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ताम्बुलं चन्दनादिकम् ॥
दातव्यं शतधाऽऽमन्त्र्य, वन्यमामरान्तिकम् ।श्मशान-भस्म चादाय, सहस्त्रं मन्त्रितं प्रिये ॥
खाने पाने प्रदातव्यं, भोज्य-वस्तुनि वा प्रिये ! ।प्रातः-काले च जप्तव्यं, त्रि-सप्त-दिनमादरात् ॥
जिह्वा-स्तम्भनमाप्नोति, वाचस्पति-समोऽपि वा ।विप्र-चाण्डालयोः शल्यं, रवौ मध्यन्दिने प्रिये ! ॥
गृहीत्वा पञ्च-वर्णान् तु, कन्यका-सूत्र-वेष्टानात् ।निखनेच्छत्रु-गेहे तु, सद्यो विद्वेषणं भवेत् ॥
पक्ष-मात्रेण देवेशि ! पशु-पक्षि-मृगादयः ।तत्तद्-वैरि-भयं शल्यं, रवौ संग्रह्य बुद्धिमान् ॥
कीलं कृत्वा शत्रु-गेहे, निखन्योच्चाटनं भवेत् ।विप्र-चाण्डालयोः शल्यमर्के, चार्कस्य मूलकम् ॥
चतुर्विधेन सम्वेष्टय, नील-सूत्रेण मन्त्रयेत् ।निखनेच्छत्रु-गेहे तु, शयनागार-मध्यतः ॥
पक्षान् मारणमाप्नोति, नात्र कार्या विचारणा ॥



यह मन्त्र मेरे द्वारा अनुभूत है और यदि उचित रीति से किया जाये तो कार्य होना निश्चित जानिये और साधना की पूरी प्रक्रिया के लिये कृपया मुझसे व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करें।