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बुधवार, 25 सितंबर 2019

सङ्कट मोचन हनुमानाष्टक



जब हर तरफ से संकट के बादल घिरे हुए हों और कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा हो तब हनुमान जी काम आते हैं,नीचे दी गई साधना से भक्त श्रीहनुमान जी को द्रवित कर के उनसे अपने मनोरथसिद्धि की याचना कर सकता है।

प्रातःकाल स्नान करके,हनुमान जी के मन्दिर में या उनकी मूर्ति के सामने अथवा उनके चित्र के सामने बैठकर एक ही बैठक में इस सङ्कट मोचन हनुमानाष्टक स्तोत्र के ५१ पाठ करे।नवरात्रि में प्रतिपदा से प्रारम्भ करे और दशमी तक दस दिनों तक नियमपूर्वक ५१ पाठ नित्य करें,नवरात्रि के बीतते-बीतते अच्छे समाचार आने लगेंगे।नवरात्रि के बाद भी करते रहें जबतक सङ्कट से मुक्ति नहीं मिल जाती,अधिक से अधिक ४१ दिनों में संपूर्ण और आश्चर्यजनक लाभ दिखाई देता है।इस स्तोत्र के पाठ से रोग-व्याधि से मुक्ति,शत्रु-बाधा-निवारण,ऋणमुक्ति,परिवार में शान्ति-समृद्धि आती है और आजीविका की प्राप्ति होती है।
विशेष:- हनुमान्‍ जी को लड्डू बहुत प्रिय है तो लड्डू का भोग अवश्य लगायें और भोग का लड्डू और भुने हुए चने बच्चों को बाँट दें तो कल्याण होगा।
स्तोत्र
बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ॥
देवन आनि करि बिनती तब, छांड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि शाप दियो तब,चाहिय कौन बिचार बिचारो ॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,सो तुम दास के शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥२॥
अंगद के संग लेन गये सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु,बिना सुधि लाय इहाँ पगु धारो ॥
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥३॥
रावन त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥४॥
बाण लग्यो उर लछिमन के तब,प्राण तजे सुत रावण मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ॥
आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥५॥
रावण युद्ध अजान कियो तब,नाग कि फांस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयो यह संकट भारो ॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥६॥
बंधु समेत जबै अहिरावन,लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो ॥
जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावण सैन्य समेत सँहारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥७॥
काज किये बड़ देवन के तुम,वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसों नहिं जात है टारो ॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो ॥८॥॥
दोहा
लाल देह लाली लसे,अरू धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर ॥
॥ इति संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥