नमो भगवते आञ्जनेयायाय महाबलाय स्वाहा
मन्त्रोद्धार : हृदय (नमः) चतुर्थ्यन्त भगवान् आञ्जनेय
एवं महाबल (भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय) और अन्त में बह्निप्रिया (स्वाहा) लगाने से यह
अष्टादशाक्षर मन्त्र बनता है।
विनियोग : अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः , अनुष्टुप्
छन्दः , हनुमान् देवता , हुं बीजं , स्वाहा शक्तिः , ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।
षडङ्गन्यास : ॐ आञ्जनेयाय हृदयाय नमः । रुद्रमूर्तये
शिरसे स्वाहा । वायुपुत्राय शिखायै वषट् । अग्निगर्भाय कवचाय हुम् । रामदूताय नेत्रत्रयाय
वौषट् । ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अस्त्राय फट् ।
श्रवणकुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमतवानरराजमिहाद्भुतम्।
अर्थात् : तपे हुए सोने केसमान आभावाले , भय को दूर करने
वाले , हृदय पर अञ्जलि बाँधे हुए , कानों में लटकते कुण्डलों से शोभायमान मुखपङ्कज
वाले अद्भुत वानरराज हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ।
इस मन्त्र का एक अयुत (दस हजार) जप करना चाहिये उसके
बाद तिलों से दशांश होम करना चाहिये तथा वैष्णव पीठ पर कपीश्वर क पूजन करना चाहिये।इसकी
पीठ-पूजा एवं आवरण पूजा द्वादशाक्षर मन्त्र के समान ही होगी।
काम्यप्रयोग : सर्वविधि सम्मत और पूर्वोक्त रीति से अनुष्ठित
इस मन्त्र को जो साधक केवल रात्रि में भोजनकर ३ दिनों तक नित्य १०८ बार जप करता है,
वह मात्र ३ दिन में क्षुद्र रोगों से मुक्त हो जाता है।भूत-प्रेत-पिशाचादि बाधाओं की
शान्ति के लिये भी उक्त प्रयोग करना चाहिये,परन्तु लम्बी एवं असाध्य व्याधियों के निबर्हण
हेतु नित्य १हजार जप करना चाहिये।
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