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सोमवार, 30 सितंबर 2019

हनुमान जी की आञ्जनेय मन्त्र साधना



।। श्री पार्वत्युवाच ।।
हनुमच्छावरं मन्त्रं, नित्य-नाथोदितं तथा ।
वद मे करुणा-सिन्धो ! सर्व-कर्म-फल-प्रदम् ।।
।। श्रीईश्वर उवाच ।।
आञ्जनेयाख्यं मन्त्रं च, ह्यादि-नाथोदितं तथा ।
सर्व-प्रयोग-सिद्धिं च, तथाप्यत्यन्त-पावनम् ।।


 

                                                              ।। मन्त्र ।।
“ॐ ह्रीं यं ह्रीं राम-दूताय, रिपु-पुरी-दाहनाय अक्ष-कुक्षि-विदारणाय,अपरिमित-बल-पराक्रमाय,रावण-गिरि-वज्रायुधाय ह्रीं स्वाहा॥”


विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग गुरुवार के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। श्री हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख बैठकर दस सहस्त्र जप करे। इस प्रयोग से सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। मनोनुकूल विवाह-सम्बन्ध होता है। अभिमन्त्रित काजल रविवार के दिन लगाना चाहिए। अभिमन्त्रित जल नित्य पीने से सभी रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। इसी प्रकार आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि सभी प्रयोग उक्त मन्त्र से किए जा सकते हैं।


विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग गुरुवार के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। श्री हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख बैठकर दस सहस्त्र जप करे। इस प्रयोग से सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। मनोनुकूल विवाह-सम्बन्ध होता है। अभिमन्त्रित काजल रविवार के दिन लगाना चाहिए। अभिमन्त्रित जल नित्य पीने से सभी रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। इसी प्रकार आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि सभी प्रयोग उक्त मन्त्र से किए जा सकते हैं।

यथा-
एतद् वायु-कुमाराख्यं, मन्त्रं त्रैलोक्य-पावनम् ।गुरु-वारे चाञ्जनेयं, समारभ्य सु-बुद्धिमान् ॥
कांक्षितां कन्यकां वाऽथ, युवाऽऽप्नोत्येव पार्वति !आञ्जनेयस्य पुरतो, ह्ययुतं जपमाचरेत् ॥
कज्जलं च रवौ ग्राह्यं, खाने पाने च पार्वति !दातव्यं त्रि-दिनं सम्यक्, स्वयमाकर्षणं भवेत् ॥
मन्त्रेणानेन देवेशि ! मन्त्रितं जल-पानतः ।सर्व-रोग-विनिर्मुक्तो, जीवेद् वर्ष-शतं तथा ॥
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰निशायाः कज्जलं तथा ।॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ताम्बुलं चन्दनादिकम् ॥
दातव्यं शतधाऽऽमन्त्र्य, वन्यमामरान्तिकम् ।श्मशान-भस्म चादाय, सहस्त्रं मन्त्रितं प्रिये ॥
खाने पाने प्रदातव्यं, भोज्य-वस्तुनि वा प्रिये ! ।प्रातः-काले च जप्तव्यं, त्रि-सप्त-दिनमादरात् ॥
जिह्वा-स्तम्भनमाप्नोति, वाचस्पति-समोऽपि वा ।विप्र-चाण्डालयोः शल्यं, रवौ मध्यन्दिने प्रिये ! ॥
गृहीत्वा पञ्च-वर्णान् तु, कन्यका-सूत्र-वेष्टानात् ।निखनेच्छत्रु-गेहे तु, सद्यो विद्वेषणं भवेत् ॥
पक्ष-मात्रेण देवेशि ! पशु-पक्षि-मृगादयः ।तत्तद्-वैरि-भयं शल्यं, रवौ संग्रह्य बुद्धिमान् ॥
कीलं कृत्वा शत्रु-गेहे, निखन्योच्चाटनं भवेत् ।विप्र-चाण्डालयोः शल्यमर्के, चार्कस्य मूलकम् ॥
चतुर्विधेन सम्वेष्टय, नील-सूत्रेण मन्त्रयेत् ।निखनेच्छत्रु-गेहे तु, शयनागार-मध्यतः ॥
पक्षान् मारणमाप्नोति, नात्र कार्या विचारणा ॥



यह मन्त्र मेरे द्वारा अनुभूत है और यदि उचित रीति से किया जाये तो कार्य होना निश्चित जानिये और साधना की पूरी प्रक्रिया के लिये कृपया मुझसे व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क करें।

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